नोएडा महिला पतंजलि योग समिति ने मनाया महिला दिवस

VISHWA GURU
सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं-ललित मिश्र-
नोएडा। सेक्टर 31 से लगभग 2 वर्ष पूर्व नोएडा का जिला अस्पताल सेक्टर 39 स्थित बेहतर लोकेशन पर शानदार बहुमंजिला इमारत में शिफ्ट किया गया था। लगभग तभी से डॉक्टर रेनू अग्रवाल यहां मुख्य चिकित्सा अधीक्षक के रूप में तैनात हैं। सीएमएस के अकुशल निर्देशन में 519 करोड रुपए की लागत से बने इस अस्पताल का औचित्य संकट में आ गया है। यदि यही सीएमएस इस जिला अस्पताल में रहीं तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रयासों को जल्द ही मिट्टी में मिला हुआ देखंेगे। हैरानी की बात तो यह है की सरकार मरीज का इलाज तो एक रुपए में कर देती है लेकिन उसके वाहन की सुरक्षा का इलाज 10 से 100 रुपये तक का होता है। यह व्यवस्था सीएमएस ने पिछले दो सप्ताह पूर्व उपलब्ध कराई है। आश्चर्य तब होता है जब नोएडा के सुप्रसिद्ध कैलाश अस्पताल में तक तक निशुल्क पार्किंग व्यवस्था उपलब्ध है।
गौरतलब है कि सरकार आमजन एवं गरीबों के लिए बेहतर सुरक्षा, चिकित्सा एवं शिक्षा की सुविधा सहज रूप से एवं कम मूल्य पर जनसामान्य तक पहुंचाना चाहती है। कार्यपालिका में मौजूद अकुशल अफसर सरकार के इन प्रयासों में पलीता लगाने का काम कर बैठते हैं, जिससे सरकारें अदल बदल होती रहती है। योगी सरकार संवेदनशील उपायों पर लगातार प्रयासरत है। लोकसभा चुनाव में मिली असफलता के बाद प्रदेश की योगी सरकार अब कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है।
कैलाश अस्पताल से भी महंगा है जिले का सरकारी अस्पताल
कहने के लिए तो 1 रुपए में इलाज हो जाता है। 1 रुपए वाली ओपीडी के लिए एक आम आदमी को तकरीबन हजार रुपए खर्च करने होते हैं। मरीज और उसकी देखरेख करने वाला महंगे किराए से तो अस्पताल परिसर तक पहुंचेगा। यदि महंगा वाला फोन नहीं है तो लाइनों में ही खोपड़ी मारता रह जाएगा ओपीडी का पर्चा बनवाना संभव नहीं होगा। मोबाइल में एप डालना जरूरी है। इधर से उधर पैदल दौड़ते दौड़ते उपचार कराने वाला और ज्यादा बीमार पड़ जाएगा। कहीं से प्रवेश, कहीं पार्किंग और कहीं से निकास के चक्कर में ही मरीज अपना पूरा दिन गवां बैठता है। सरकार के कर्मचारी हो तो उनके स्वभाव में अकड़ देखते ही बनती है। प्राइवेट अस्पतालों में पैसा जरूर लगता है लेकिन उनका व्यवहार और सुविधाएं आकर्षण का केंद्र होती है। एक दिन का रोजगार व होने वाला व्यय और तकलीफ को जोड़ लें तो सरकारी अस्पताल महंगा पड़ जाता है।
मौत को दावत देती अस्पताल की सषुल्क पार्किंग
दिल्ली के बेसमेंट में बने कोचिंग में पिछले दिनों वर्षा का पानी भर जाने के कारण तीन लोगों की मौत हो गई थी। जिला अस्पताल के बेसमेंट में सषुल्क पार्किंग व्यवस्था करीब दो सप्ताह पूर्व लागू की गई है। बेसमेंट में जहां बिजली के पैनल तथा टूटे पाइप से मल मूत्र का गिरता पानी से पूरे परिसर में दुर्गंध फैली रहती है। वर्षा होने पर बेसमेंट में भी पानी घुसने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता है। दिल्ली की तर्ज पर यहां कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। करीब दो माह पूर्व अस्पताल के सर्वर रूम में आग लग गई थी और बड़ा हादसा होने से बच गया था। आठ दमकल वाहनों ने इस पर काबू पाया था। इस बहुमंजिला इमारत में फायर उपकरण के भी पुख्ता इंतजाम नहीं है। मेंटेनेंस का भारी अभाव है। 519 करोड रुपए की लागत से इमारत का निर्माण किया गया था। अकुशल निर्देशन होने के कारण यह इमारत अब खंडहर में तब्दील होना शुरू हो गई है। बेसमेंट की टूटी पाइप लाइन और उखड़ती दीवारों की परत चीख चीख कर घोटाले घपलों व हादसों को दीदार करा देती है।
अस्पताल की अच्छी लोकेशन को खा गई अव्यवस्था
अकुषल निर्देशन किसी भी संस्था अथवा संगठन को गंभीर रूप से बीमार कर देता है। कुछ यही हाल नोएडा के जिला अस्पताल का बना हुआ है। प्रदेश सरकार एवं नोएडा प्राधिकरण के प्रयासों से यह जिला अस्पताल अच्छी लोकेशन पर दिया गया है। मरीज को कोई असुविधा न हो और आसानी से अस्पताल में उपचार हेतु पहुंच सके। हैरानी जब होती है कि अस्पताल पहुंचने के लिए घुमावदार सड़कें मरीज की मौत का इंतजार करा देती हैं। अकुशल निर्देशन का इससे बड़ा प्रमाण क्या होगा जब अच्छी लोकेशन पर अस्पताल होने के बावजूद एप्रोच रोड कठिनाइयों से भर दिया गया हो। यू टर्न के बाद यू टर्न कहीं से प्रवेश कहीं पार्किंग और कहीं से निकास, कहीं टोकन और कहीं पर्चा बनवाने में ही अधिकांश समय मरीज बर्बाद कर देता है। यह कर भी ले तो डॉक्टर मुलाकात की लाईन और दवा लेने की लाईन मरीज का तो दम ही निकाल देंगी। हर तरफ सिर्फ अव्यवस्था के करण भीड़ दिखाई देती है।
करोड़ों की लागत से लगा सेंट्रलाइज्ड एसी कभी चला ही नहीं
प्रदेश सरकार ने तो पूरी निष्ठा के साथ मरीज और चिकित्सकों की सुविधा का ध्यान रखा था। हरामखोरी करने वाले अफसरों ने पूरे सिस्टम को लाचार और बीमार बना डाला है। डॉक्टर और मरीज अस्पताल परिसर में पसीने से लथपथ बने रहते हैं जिसके कारण डॉक्टर की शक्ल भी बीमार जैसी हो जाती है और इलाज को आया मरीज और ज्यादा बीमार होकर चला जाता है। प्रदेश सरकार को मरीजों के माध्यम से फीडबैक लेने की आवश्यकता है, जब इसका निष्कर्ष निकल कर आएगा तो करोड़ों रुपए की बर्बादी नजर आने लगेगी, जिसके अफसर ही जिम्मेदार है।
भाड़ में जाए मरीज और डॉक्टर जनप्रतिनिधियों को मतलब नहीं
किसी भी अव्यवस्था का फीडबैक लेने व व्यवस्था को सुधारने की जिम्मेदारी क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों की होती है। क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों के अपने ही इतने बड़े कारोबार हैं कि उन्हें जिला अस्पताल जैसे संवेदनशील प्रोजेक्ट की ओर ध्यान देने का समय ही नहीं मिलता है। भाजपा नेताओं से जनता ने जो उम्मीद की थी उसे पर यह नेता खरे नहीं उतर रहे हैं जिसका आने वाले समय में भाजपा सरकार को खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। सीएमएस रेनू अग्रवाल तो मुख्यमंत्री के प्रयासों को मिट्टी में मिला देंगी।
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